निरंजन श्रोत्रिय की कविताएं
निरंजन श्रोत्रिय
निरंजन श्रोत्रिय की कविताओं को अगर संपूर्णता में देखें तो उनकी कविताओं में जीवन की जद्दोजहद और स्वप्न तो है ही।अपने समय के क्रूर यथार्थ पर भी उनकी गहरी नज़र है।वे एक बादशाह को तानाशाह में बदलते देखते हैं तो भौंचक नहीं रह जाते बल्कि उसे कविता में दर्ज करते हैं।उनकी कविताओं में अलग तरह की बेचैनी है जो हर चीज़ को बारीकी से देखने के लिए मजबूर करती है।यहां प्रस्तुत कविताएं इसका उदाहरण हैं कि कविता कैसे बने बनाए मुहावरों से अलग भी लिखी जा सकती है और अपनी छाप छोड़ सकती है।
अंतर बताओ
जब भी खोलता हूँ बच्चों का पन्ना
अख़बार में
एक स्तम्भ पाता हूँ स्थायी भाव की तरह—
अंतर बताओ!
दो चित्र हैं हू-ब- हू
कि बच्चे पार्क में खेल रहे
या स्कूल में मचा रहे धमा-चौकड़ी
या सर्कस का कोई दृश्य
दस अंतर बताने हैं बच्चों को
क्यूँकि दिखते एक-से, मगर हैं नहीं
बच्चे जुट जाते हैं अंतर ढूँढने
जितने ज़्यादा अंतर
उतने अधिक बुद्धिमान!
उस समय जबकि समानता ढूँढना बेहद ज़रूरी है
बच्चे अंतर ढूँढना सीख खुश हो रहे हैं।
पुल
जब मैं पुल पार कर रहा था
आशंकित था कि कहीं यह ढह न जाए
पुल पार होने के बाद इत्मीनान कि अब भले ही ढह जाए!
पुल नहीं ढहा मुस्कुराता हुआ मेरे इत्मीनान पर।
पुल पर अभी और लोगों को पार होना था
यह बात केवल पुल ही जानता था।
तमगे
तमगे जब जेब पर टांक दिए जाते हैं
तो नज़र नीचे करने पर ज़मीन नहीं तमगे ही दिखते हैं।
तमगे आपकी नज़र और
आपकी ज़मीन के बीच
सबसे बड़े व्यवधान होते हैं।
सख़्ती
मैंने सख़्ती से कहा था
टिफिन में दो ही रोटियां रखना
दफ़्तर में टिफिन खोला तो तीन रोटियां थीं।
दो रोटियां मेरी भूख थीं
तीसरी उसका प्रेम था या अतिक्रमण
पता नहीं!
मंशा
उन्होंने कहा फूल
फूल मुरझा गए
उन्होंने कहा नदी
नदी सूख गई
उन्होंने कहा आग
आग बुझ गई
उन्होंने कहा मनुष्य
मनुष्य मर गए
उनकी मंशा अंततः
उनके शब्दों में उतर चुकी थी।
मुझे पसंद है
मुझे पसंद है
थकान और उदासी भरे दिन को चुकाकर
शाम को घर लौटना
मुझे पसंद है
घर लौटते हुए
गली के आखिरी छोर पर मौजूद
भाड़ पर खड़े रह कर
मक्का के दानों को गर्म तवे पर फूटते हुए देखना
देखना पीली मक्का को सफ़ेद और हल्का होते हुए
लेकिन मुझे और भी पसंद है
उन बठ्ठर दानों को देखना
जो फूटते नहीं
मुझे लगता है
तमाम जी-हुजूर शोर के बीच
‘नहीं’ कहने वाले
अभी बचे हुए हैं।
वारंट
बादशाह को कविता से घृणा, संगीत से चिढ़ और चित्रों से एलर्जी थी।
मुल्क के सभी कवि, संगीतज्ञ और चित्रकार
या तो मारे जा चुके थे
या थे कारावास में।
शब्दों, सुरों और रंगों से विहीन यह समय
बहुत मुफ़ीद था बादशाहत के लिए
फिर एक दिन एक परदेसी आया उस देश
जैसा कि ऐसी कथाओं में आता ही है
उसने बादशाह को दिखाया
गुलमोहर का सुर्ख़ पेड़ और ज़मीन पर गिरे कुछ फूल और कहा– यह एक प्रेम कविता है।
उसने सुनाई अमराई में कूकती कोयल की कूक
और कहा– यह राग मल्हार है।
उसने दिखाया बारिश से धुले आसमान में
उभर आया इंद्रधनुष और कहा–ये धरती के बादलों के प्रति आभार के रंग हैं।
बादशाह बेचैन हुआ
फिर मुल्क में जारी हुआ गुलमोहर, कोयल और इंद्रधनुष की गिरफ़्तारी का वारंट।
परीक्षा
यही सिखाया गया था बचपन में
कि परीक्षा में प्रश्नों के उत्तर लिखने से पहले
प्रश्नपत्र ध्यान से पढ़ो, दो बार पढ़ो
उत्तर पुस्तिका में पूरा प्रश्न न लिखो
हाशिए पर लिखो प्रश्न क्रमांक केवल
पहले जवाब दो आसान सवालों के
फिर बचे समय में हल करो कठिन सवाल
हम जीवन भर यही करते रहे
दिए आसान सवालों के जवाब इतने विस्तार से
कि कठिन सवालों के लिए समय ही न बचा
आसान जवाबों से मिले हमें पासिंग मार्क्स
और एक कठिन जीवन
कठिन सवाल अभी भी सुलग रहे प्रश्नपत्र में
और उनके प्रश्न क्रमांक हाशिए पर
बगैर उत्तर के।
वाट्स एप संदेश
आपने संदेश भेजा
एक टिक हुआ
संदेश उन्हें मिल गया
दो टिक हुए
संदेश पढ़ लिया गया
दोनों टिक नीले हुए।
नीले टिक आपकी संतुष्टि होते हैं।
फिर जन्म लेती है चतुराई
जिसे कहते प्राइवेसी सैटिंग
उसके बाद पढ़ लिए जाने के बावजूद
दोनों टिक नीले नहीं होते
यह सैटिंग नीले को अपहृत कर लेती है।
क्या पता पढ़ा या नहीं?
उत्तर की बाध्यता से मुक्त यह सैटिंग
किसी की मजबूरी
किसी की सुविधा
किसी का निज
कोई मुझे समझाए कि यह
धूर्तता नहीं है।
सौंदर्य
आज मैंने मोर के बदसूरत पैर देखे
और ख़ुश हुआ
इन्हीं पैरों पर सवार हो आएगी बरसात
आज मैंने मज़दूर के खुरदुरे हाथ देखे
और ख़ुश हुआ
इन्हीं हाथों से बनेगी इमारत
आज मैंने माँ की फटी बिवाइयाँ देखीं
और ख़ुश हुआ
इन्हीं दरारों में सुरक्षित रहेंगे हम
आज मैंने बच्चे को कंचों के लिए रोते देखा
और ख़ुश हुआ
दुनिया ठीक-ठाक चल रही है
आज मैंने सौंदर्य को
उलट-पलट कर देखा
और ख़ुश हुआ!
निरंजन श्रोत्रिय
जन्म: 17 नवम्बर 1960, उज्जैन में एक शिक्षक परिवार में।
शिक्षा: विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से वनस्पति शास्त्र में पी - एच.डी.
सृजन: तीन कविता-संग्रह 'जहाँ से जन्म लेते हैं पंख', 'जुगलबंदी', 'न्यूटन भौंचक्का था', दो कथा-संग्रह 'उनके बीच का ज़हर तथा अन्य कहानियाँ' और 'धुआँ' , एक निबंध-संग्रह 'आगदार तीली' प्रकाशित। 17 वर्षों तक साहित्य-संस्कृति की पत्रिका 'समावर्तन' का संपादन। युवा कवियों के बारह 'युवा द्वादश' का संचयन। कई रचनाओं का अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं में अनुवाद। बच्चों के लिए भी लेखन।
संप्रति: उच्च शिक्षा से स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति के बाद स्वतंत्र लेखन।
संपर्क: 302, ड्रीम लक्जूरिया, जाटखेड़ी, होशंगाबाद रोड, भोपाल- 462 026
मोबाइल: 9827007736
ई-मेल: niranjanshrotriya@gmail.com






सभी कविताएं बहुत अच्छी हैं। मंशा,पुल, सख्ती ,तमगे, व्हाट्सएप संदेश अलहदा विषयों की कविताएं है।व्यंजना कमाल की है।वारंट आज की जरूरी कविता है।
ReplyDeleteNiranjan Shrotriya जी को पढ़ना अपने मन- मस्तिष्क के तारों को झंकृत करना है । रचनात्मक ऊर्जा के श्रोत हैं और कितने ही पौधों को सींचित कर इन्होंने पल्लवित- पुष्पित किया है , जो अपने रचना प्रक्रिया से हमारी भाषा और साहित्य को समृद्ध कर रहे हैं
ReplyDeleteअच्छी कविताएं।
ReplyDeleteअच्छी कविता
ReplyDeleteअच्छी कविताएँ
ReplyDeleteबेहतरीन कविताएं
ReplyDeleteप्रश्नों के हर उत्तर पर एक अज्ञात निरुत्तर प्रश्न चिन्ह ,हमारी संवेदनाओं को झंकृत करते हैं
ReplyDeleteबहुत मुतास्सिर किया रचनाओं ने।
ReplyDeleteअंतर के युग में समानता की बात --- यह तो बड़ा कुफ्र है!!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर शुभकामनाएं और बधाई।
ReplyDeleteबेहतरीन कविता।
ReplyDeleteइन कविताओं में प्रखर राजनीतिक चेतना है। समाज की मनोवृत्ति पर आलोचनात्मक टिप्पणी है। कविताओं में विविधता है और सभी कविताएं पाठकों को आमंत्रित कर रही हैं।
ReplyDeleteWhatsApp मैसेज की प्रक्रिया के बारे में लिखकर वरिष्ठ कवि ने बता दिया कि कविता के विषय तकनीकी जीवन से भी चुने जा सकते हैं। कई बार स्त्रियाँ निजता के चलते यह सेटिंग रखती हैं कि नीली धारी न हो। नीली धारी होने से संवाद जारी रहने के अंदेशे मिलते हैं और यह किसी की इच्छा अनुकूल न हो। अंतिम पंक्तियाँ आरोप दायर करती लग रही हैं, यहाँ कवि की संवेदना खो गई लगती है।
अग्रज कवि निरंजन जी को इन कविताओं के लिए बधाई। उनका काव्य संसार विस्तृत होता रहे। शुभ कामनाएं।
कौशिकी में प्रकाशित निरंजन क्षोत्रिय जी की कविताएं पढ़ीं । वे पल बहुत ही सुखद थे । वे पल की जब एक सहृदय का कविता से साक्षात्कार हो रहा था । ये केवल राजनीतिक चेतना की कविताएं नहीं ये इंसानियत की कविताएं हैं । वे सच जो बड़ी-बड़ी बातों,भारी-भरकम विचारों की भीड़ में कहीं खो गए हैं उनको कविताओं के माध्यम से दिखाने का उपक्रम है । कितनी छोटी बात लगती है कि नज़रें तमगों में फंसकर रह जाती है मगर इस बात में कितनी गहराई है । कोई ऐसा माध्यम,कोई ऐसा व्यवधान जो सुखद लगे पर जो आपको वास्तविकता से दूर कर दे । तानाशाही का बेहतर चित्रण कविता में हुआ है । सारी कविताएं कई -कई बार पाठ की मां करती है । इतनी बेहतर कविताएं रचने के लिए निरंतर जी को बधाई। इतनी स्तरीय कविताएं चयनित कर प्रकाशित करने के लिए कौशिकी और शंकरानन्द जी को साधुवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविताएं
ReplyDeleteनिरंजन क्षोत्रिय जी मेरे पसंदीदा कवि हैं। इनकी कौशिकी में प्रकाशित हुई कविताएं संवेदना और विजन से लबरेज़ कविताएं हैं। पहली कविता 'अंतर बताओ' उस महीन विडंबना को उजागर करती है जो हमारे सामाजीकरण और शिक्षा में व्याप्त बड़े-बड़े आदर्शों के बीच जड़ जमाकर बैठी तुच्छ व्यवहारों को बयां करती है। समानता और स्वतंत्रता के आदर्शों के बीच अंतर और भेदभाव की इन सीखों को कविता बड़े बेहतरीन ढंग से निशाना बनाती है। कविता 'सख़्ती' प्रेम की बड़ी मासूम और सहज अभिव्यक्ति की बानगी है जिसे हममें से कई रोज अनुभव करते हैं। 'मुझे पसंद है' अपने आप में प्रतिरोध की कविता है। कविता सौंदर्य अपने उदात्त कहन में एक बड़ी कविता है, ये साधारण और श्रमशील लोगों के अवदान का उत्सव मनाती हुई कविता है। अन्य कविताएं भी बहुत उम्दा हैं। कवि को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
ReplyDelete- आलोक कुमार मिश्रा
आज के समय में संबंधों में धूर्तता की मिलावट की बेहतरीन कविता 💐
ReplyDeleteकविताएं प्रथमतः प्रेम होता है तीसरी रोटी में...खाने से छूट तो नहीं गयी...
ReplyDeleteअच्छी कविताएं।
ReplyDeleteनिरंजन हमारे समय के महत्वपूर्ण कवि हैं। शानदार कविताएँ।
ReplyDeleteछोटी पर जरूरी और बेहतरीन कविताएँ ..💐💐💐
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