विष्णु नागर की कविताएं
विष्णु नागर
विष्णु नागर की कविताओं में जो व्यंग्य है वह बेध देता है।इनमें हमारे समय का वह यथार्थ है जो विद्रूप है और विह्वल करने वाला है।उनकी यह शैली गद्य में भी उतनी ही मारक है जितनी कविता में।ये कविताएं इसका उदाहरण हैं कि कैसे व्यंग्य का इस्तेमाल कर कविता को प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
दलाल
दलाल कभी ग़लत नहीं होते
वे खरीदनेवाले के भी
शुभचिंतक होते हैं
बेचनेवाले के भी
वे सकारात्मक होते हैं
वे काले को भी उतना ही अच्छा बताते हैं
जितना सफेद को
पीले, नीले, हरे, गुलाबी के भी वे
प्रशंसक होते हैं
वे दोनों से अंतरंग होकर
दोनों की हिम्मत बढ़ाते हैं
दोनों से कमाते हुए
दोनों को सुखी -समृद्ध देखना चाहते हैं
दलाल कभी विफल नहीं होते
दलाल कभी ग़लत नहीं होते
हवा पानी रोशनी से भी ज्यादा
जरूरी होते हैं दलाल।
समय
कल पत्ते भी जिनकी इजाजत से
हिलते थे
आज जंगल के जंगल उजड़ जाते हैं
उन्हें खबर तक नहीं होती।
कवि की मुश्किल
एक शब्द ज्यादा जुड़ जाए तो
कविता अपना बोझ नहीं उठा पाती
एक शब्द कम पड़ जाए
तो कविता लंगड़ा जाती है
एक शब्द गलत जुड़ जाए
तो कविता चक्कर खाकर गिर पड़ती है
कवि की मुश्किल
कवि की मुश्किल है।
हो सकता है
हो सकता है जब आप यह कविता पढ़ रहे हों
मुझे इस दुनिया से गुजरे
पचास साल हो चुके हों
मैं तब सभी जीवितों की स्मृतियों से
इतनी दूर जा चुका हूं कि
वापस नहीं आ सकता
वोमेरी सभी किताबों के सभी पन्ने
सड़कर गल चुके हों
तकनालाजी के बोझ तले दफ्न हो चुके हों
हिंदी अजनबी भाषा बन चुकी हो
मेरी चौथी- पांचवीं पीढ़ी को
मेरे नाम का उच्चारण करने में मुश्किल आने लगी हो
हो सकता है आप यह कविता
छह महीने बाद पढ़ रहे हों
आपको लगे कि इस कवि को पढ़ना
समय की बर्बादी है
आप कुछ और पढ़ने या कुछ और करने लगे हों
होने को यह भी हो सकता है
ये मेरी लिखी आखिरी पंक्तियां हों।
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दुनिया में अभी भी बहुत सी चीज़ों पर लुटेरों, हत्यारों, अरबपतियों, मूर्खों, नेताओं, अफसरों का कब्जा नहीं हुआ है
हवा, आँधी, आकाश, बादल, बरसात, सूरज-चाँद-तारों की रोशनी, रंग, कलम, किताब, संगीत, प्रेम, मस्ती, लापरवाही, एकांत, विद्रोह, क्रोध, करुणा, विचार
मेरी हताशाओं को कभी-कभी यहीं पनाह मिलती है।
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सामूहिक बलात्कार
क्या नौ साल की लड़की
बलात्कार के बारे में
सपने में भी सोच सकती है?
बलात्कार के दौरान
अपनी मौत का सपना देख सकती है?
फिर तो वह यह भी देख सकती है
उसके बलात्कारी
दो या पाँच साल बाद
बाइज्ज़त बरी हो गए हैं
उनके सम्मान में निकले जूलूस में
शहर के सभी प्रतिष्ठित लोग शामिल हैं
उनके ऊपर जगह-जगह पुष्पवर्षा की जा रही है
रात्रिभोज का भव्य आयोजन है
जिसका निमंत्रण
उसके परिवार को भी गया है
इसके बाद उसके परिजन इतने डर जाते हैं
कि रातोंरात घर से भाग जाते हैं
मुंबई सेंट्रल पर उतरकर वे सोचते हैं
कि आगे क्या
मुंबई तो सबके सपनों को साकार करती है
क्यों यह सच है न?
नौ साल की लड़की अगर सपने में
इतनी दूर जा सकती है
तो 12-16- 18 साल की लड़की तो
इससे भी बहुत आगे जा सकती है
उसकी मौत के बाद भी बलात्कारी थके नहीं
उनकी बेसब्री का आलम यह था
कि वे आपस में झगड़ने लगे
अंत में उनकी एकता जीत होती है
लाश कभी मिलती नहीं
उनकी ' सच्चरित्रता ' का प्रकाश
पूरे इलाके में इतनी दूर तक फैल जाता है
कि रात होती है
तो भी अंधेरा नहीं होता!
उसकी माँ
हां उसकी माँ वेश्या थी
ज्यादा मिले तो ज्यादा
पेट भरने को मिले तो उतने में
अपना शरीर बेचती थी
पता नहीं उसका पिता कौन था
शायद उसकी नानी भी वेश्या थी
दादी भी
उसे ठीक- ठीक पता नहीं
मगर लगता है कि
उसकी बहन
जो उसकी बहन थी , बहन है
वेश्या थी
वेश्याओं का मोहल्ला ही
उसकी माँ का वतन था
उसके राष्ट्रगीत की धुन पर वह
किसी के साथ सोई होती
तो भी तनकर खड़ी हो जाती थी
उस वतन के लिए जान देने को
वह हरदम तैयार रहती थी
वह किसी और देश किसी और राष्ट्रपति
किसी और प्रधानमंत्री को नहीं जानती थी
उसकी कोई दिलचस्पी नहीं थी कि
उसके मोहल्ले में बिजली का इकलौता बल्ब
किसके जलाए जलता -बुझता है
किसने उसके इलाके में
कभी ये टूटी -फूटी सड़क बनाई थी
उसकी कोई दिलचस्पी नहीं
इस दुनिया को बनाने वाला कौन था
उसकी एक ही विशेषता थी कि
वह उसकी माँ थी
और माँ थी और माँ थी और माँ रहेगी
वह जिस किसी मर्द के साथ सोई हो
वह उन दोनों के बीच घुस जाता था
जैसे दूसरों के बच्चे भी
अपने माँ -बाप के बीच
जगह बनाकर सो जाते हैं
वह उसे उस वक्त कई बार मारती थी
कई बार गालियां देती थी
कभी बहलाफुसला कर बाहर भेज देती थी
वह उसकी माँ थी
उसे सारे हक थे
उसने न जाने कितनी बार उसे
आठ आने तक देने से मना किया था
लेकिन वह उसकी माँ थी
उसे किसी से पूछना नहीं पड़ा था कि
कौन उसकी माँ है
उसका माँ होना उसे दुनिया का
सबसे पवित्र, सबसे निर्मल व्यक्ति बनाता था
उसका माँ होना उसे सबसे सुंदर बनाता था
उसका माँ होना उसे रुलाता था, हँसाता था
उसकी याद उसे बार- बार
मनुष्य बनाती थी।
अख्तर का हिंदू दोस्त
मैंने अख्तर को फोन किया
वह खुश हो गया
उसने बीवी से धीरे से कहा
देख, पगली, एक हिंदू का फोन आया है
सच कहता था न
इन्सानियत अभी बची हुई है
मैंने कहा, अख्तर तू यह क्या कह रहा है
मैं तेरे बचपन का दोस्त हूं
हां -हां मैं समझ गया तू परषोतम है
पर मेरी भोली बीवी खुश हो जाती है
जब किसी हिन्दू का फोन आता है
कभी- कभी तो क्या बताऊं
परषोतम
हिंदू ने फोन किया यह सुनकर
खुशी से नाचने लगती है
कहूं कि आज तो हलवा खिला दे
तो झट से बनाकर मेरे मुंह में
गरम -गरम ठूंस देती है
मरी,मेरा मुंह जला देती है
इस बार तो कितने ही महीने बाद आया
किसी हिन्दू भाई का फोन
अख्तर ये तुझे क्या हो गया है
अब मैं तेरे लिए हिंदू
और तू मेरे लिए मुसलमान है?
हां परषोतम
अख्तर अब अख्तर नहीं
परषोतम अब परषोतम।
विष्णु नागर
जन्म 14 जून 1950।बचपन और छात्र जीवन शाजापुर,मध्य प्रदेश में बीता। 1971 से दिल्ली में पत्रकारिता शुरु की।1982 से 1984 तक जर्मन रेडियो ‘डोयचे वैले’ की हिंदी सेवा में भी रहे।
‘नवभारत टाइम्स’, ‘हिन्दुस्तान’, ‘कादंबिनी’, ‘नई दुनिया’, ‘शुक्रवार’ आदि पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे। भारतीय प्रेस परिषद एवं महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा की कार्यकारिणी के सदस्य रहे।
उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं–‘मैं फिर कहता हूँ चिड़िया’, ‘तालाब में डूबी छह लड़कियाँ’, ‘संसार बदल जाएगा’, ‘बच्चे, पिता और माँ’, ‘कुछ चीज़ें कभी खोई नहीं’, ‘हँसने की तरह रोना’, ‘घर के बाहर घर’, ‘जीवन भी कविता हो सकता है’ 'ऐसा मैं हिन्दू हूं' तथा ‘कवि ने कहा’ (कविता-संग्रह); ‘आज का दिन’, ‘आदमी की मुश्किल’, ‘कुछ दूर’, ‘ईश्वर की कहानियाँ’, ‘आख्यान’, ‘रात दिन’, ‘बच्चा और गेंद’, ‘पापा मैं ग़रीब बनूँगा’ (कहानी-संग्रह); ‘जीव-जन्तु पुराण’, ‘घोड़ा और घास’, ‘राष्ट्रीय नाक’, ‘देशसेवा का धन्धा’, ‘नई जनता आ चुकी है’, ‘भारत एक बाज़ार है’, ‘ईश्वर भी परेशान है’, ‘छोटा सा ब्रेक’ तथा ‘सदी का सबसे बड़ा ड्रामेबाज’ (व्यंग्य-संग्रह); ‘आदमी स्वर्ग में’ (उपन्यास); ‘कविता के साथ-साथ’ (आलोचना); ‘असहमति में उठा एक हाथ’ (रघुवीर सहाय की जीवनी);
‘हमें देखतीं आँखें’, ‘आज और अभी’, ‘यथार्थ की माया’, ‘आदमी और उसका समाज’, ‘अपने समय के सवाल’, ‘ग़रीब की भाषा’, ‘यथार्थ के सामने’, ‘एक नास्तिक का धार्मिक रोजनामचा’ (लेख और निबन्ध-संग्रह); ‘मेरे साक्षात्कार : विष्णु नागर’ (साक्षात्कार)।
‘सहमत’ संस्था के लिए तीन संकलनों तथा रघुवीर सहाय पर एक पुस्तक का संपादन। परसाई की चुनी हुई रचनाओं का संपादन। नवसाक्षरों एवं किशोरों के लिए भी पुस्तक लेखन।
मध्य प्रदेश सरकार के शिखर सम्मान’,हिन्दी अकादमी, दिल्ली के ‘साहित्य सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘राही मासूम रज़ा साहित्य सम्मान’, ‘व्यंग्य श्री सम्मान’,'परंपरा ऋतुराज सम्मान','रामनाथ गोइन्का पत्रकार शिरोमणि पुरस्कार','राही मासूम रजा साहित्य सम्मान','जनकवि मुकुट बिहारी सरोज सम्मान' आदि से सम्मानित।
फिलहाल स्वतंत्र लेखन।
सम्पर्क : vishnunagar1950@gmail.com






सामयिक हालात पर मार्मिक व्यंग्य करती कवितायें
ReplyDeleteविष्णु नागर गिरते मूल्यों के साक्षी लगते हैं।
ReplyDeleteविष्णु नागर बहुत साहसी कवि भी हैं। व्यंग्य को बरतने का उनका अंदाज उन्हें महत्वपूर्ण पत्रकार, कवि, लेखक बनाता है। उन्होंने अलग लीक बनाई और चले । यह अंक अच्छा है।
ReplyDeleteबेहद मारक कविताएं 🌹🌹🌹👍👍
ReplyDeleteआदरणीय विष्णु जी की कविताएँ राजनीतिक - सामाजिक चेतना की सशक्त कविताएँ हैं
ReplyDeleteहमारे प्रिय कवि हैं विष्णु जी. 🌹🌹🙏
ReplyDeleteअपने समकाल की विद्रूपताओं का आईना दिखाती सटीक व्यंजनापूर्ण कविताएं।
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