निरंजन श्रोत्रिय की कविताएं
निरंजन श्रोत्रिय निरंजन श्रोत्रिय की कविताओं को अगर संपूर्णता में देखें तो उनकी कविताओं में जीवन की जद्दोजहद और स्वप्न तो है ही।अपने समय के क्रूर यथार्थ पर भी उनकी गहरी नज़र है।वे एक बादशाह को तानाशाह में बदलते देखते हैं तो भौंचक नहीं रह जाते बल्कि उसे कविता में दर्ज करते हैं।उनकी कविताओं में अलग तरह की बेचैनी है जो हर चीज़ को बारीकी से देखने के लिए मजबूर करती है।यहां प्रस्तुत कविताएं इसका उदाहरण हैं कि कविता कैसे बने बनाए मुहावरों से अलग भी लिखी जा सकती है और अपनी छाप छोड़ सकती है। अंतर बताओ जब भी खोलता हूँ बच्चों का पन्ना अख़बार में एक स्तम्भ पाता हूँ स्थायी भाव की तरह— अंतर बताओ! दो चित्र हैं हू-ब- हू कि बच्चे पार्क में खेल रहे या स्कूल में मचा रहे धमा-चौकड़ी या सर्कस का कोई दृश्य दस अंतर बताने हैं बच्चों को क्यूँकि दिखते एक-से, मगर हैं नहीं बच्चे जुट जाते हैं अंतर ढूँढने जितने ज़्यादा अंतर उतने अधिक बुद्धिमान! उस समय जबकि समानता ढूँढना बेहद ज़रूरी है बच्चे ...