Posts

निशांत की कविताएं

Image
                                            निशांत निशांत की कविताएं इस मायने में अलग हैं कि यहां युवा जीवन की जद्दोजहद,नौकरी,प्रेम,और बेरोज़गारी का यथार्थपूर्ण और मार्मिक चित्रण शुरू से मिलता रहा है।जिन विषयों पर सहज रूप से ध्यान नहीं जाता ऐसे विषयों पर निशांत की कविताएं अक्सर ध्यान खींचती हैं। यहां प्रस्तुत कविताएं इसका उदाहरण हैं। कोटा I . वे इतने भोले होते हैं किसी गैंग में शामिल नहीं होते कोई नशा नहीं करते घर –घरवालों और अपने बारे में सोचते सोचते एक दिन महज शरीर में तब्दील हो जाते हैं वे पढ़ने आते हैं पढ़ते पढ़ते लड़ाकू हो जाते हैं कुछ पढ़ाकू भी दीन –दुनिया से कट जाते हैं कौन सा भूत है जो शिकारी कुत्ते सा उनका पीछा करता है दौड़ते दौड़ते वे कोटा पहुचते हैं जिसे जीत समझते थे वह तो एक बूंद भी नहीं है इस संसार के लिए तब बौद्धत्व की प्राप्ति होती है ज्ञान से जिंदगी में सब पाते पाते सब खो गया सिर्फ औया सिर्फ देह को कमरे से बाहर निकाला गया ज्ञान कोटा में ही रह गया II. वे क्या बनना चाहते ...

प्रभात की कविताएं

Image
प्रभात   कविता में प्रभात की उपस्थिति उस समूह की उपस्थिति है जो हाशिए पर है और बहुत कठिन जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिया गया है।लोक का ऐसा संसार उनकी कविताओं से झांकता है जो दुःख,अवसाद,मृत्यु और यातना के जांते में रोज पिसता है लेकिन मर नहीं जाता। गिरता है और जीने के लिए फिर से उठ खड़ा होता है।लगभग उपेक्षित कर दिए गए संसार की उनकी कविताएं बेध देती हैं।यहां प्रेम भी है तो गहरी उदासी के साथ है। उनकी कविताएं देर तक और दूर तक साथ रहने वाली हैं।   बचत इच्छाएँ तो बचती  जिनके पीछे भागा-भागा फिरा सारी उमर कितना बचा-बचा कर रखा था जिन्हें लम्बी उदासी से घिर जाने पर भी जिनमें जान ही नहीं उन इच्छाओं से  अब मोह भी नहीं तुम्हारी आँखों ने कहा था कभी मुझे  निर्मोही तब कितना मोह था मन में ऐसा होता है जीवन में बचत करते-करते बीत जाती है उम्र  बचता कुछ भी नहीं। उमस इस उमस की कोई बारिश नहीं है  यह इंसानों की पैदा की हुई है  चेहरे का पसीना पौंछते-पौंछते बीत गया दिन  पसीना पौंछते-पौंछते ही बीत जाएगा जीवन  जो बंद ठण्डी हवाओं में बैठे हैं  क्यों आएँगे बाहर...

ज्योति चावला की कविताएं

Image
ज्योति चावला  समकालीन कविता में जिन कवियों ने अपनी कविताओं में स्त्री के जीवन-संघर्ष और स्वप्न को एक साथ रेखांकित किया है उनमें ज्योति चावला का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है।अपने लेखन के कुछ ही वर्षों में उन्होंने अपना एक मुहावरा अर्जित कर लिया है।उनकी कविताओं को पढ़ते हुए जो स्त्री का चेहरा सामने आता है वह सिर्फ स्त्री होती है।इस देश की कोई भी स्त्री।गांव या शहर का फर्क यहां दिखाई नहीं देता।यही कारण है कि ये कविताएं अपने देश काल और परिवेश से इतर उन विडंबनाओं की तरफ इशारा करती हैं जिनकी वजह से स्त्री का जीवन लगातार कठिन होता जा रहा है। यहां प्रस्तुत कविताएं स्त्री जीवन के साथ-साथ अपने समय और समाज की उन सच्चाइयों से रुबरु करवाती हैं जिनकी वजह से आज मानवीय मूल्य ख़तरे में है।पूरी दुनिया एक अघोषित युद्ध की आग में जल रही है।वास्तव में यह एक स्त्री की निगाह से इस समाज को देखने की कोशिश है जिसमें सामाजिक परिवर्तन के साथ-साथ राजनीतिक पतन को भी पकड़ने का प्रयास किया गया है। नीली पड़ गई है पृथ्वी की देह मेरी बेटी अब खिलौनों और कहानियों की  रंग-बिरंगी दुनिया से उकताने लगी है वह पंछी की ...

मदन कश्यप की कविताएं

Image
मदन कश्यप  मदन कश्यप की कविताओं से गुजरते हुए यह एहसास हर बार होता है कि उनकी कविताएं तटस्थ नहीं बल्कि अपने समय और समाज से मुठभेड़ करती कविताएं हैं। उनमें हमारा समय बोलता है।यही कारण है कि उनकी कविताएं पढ़ते हुए एक बेचैनी सी होती है।ये कविताएं गहरे रूप से राजनीतिक हैं।यहां प्रस्तुत कविताएं पढ़ कर यह बात बहुत विश्वास के साथ कही जा सकती हैं। अमेरिका मेज पर फैलाकर दुनिया का नक्शा  पूछता है मेरा बेटा : कहाँ है अमेरिका मैं अपनी मद्धम आँखें नक्शे में गड़ाकर  काँपती अँगुलियों से उसे दिखाता हूँ  यह देखो बेटे यहाँ है अमेरिका मेक्सिको पनामा कोस्टारिका होंदुरास  और वेनेजुएला पर कुण्डली मारकर बैठा हुआ  कैरेबियन सागर में पूँछ पटक-पटककर  अल-सल्वादोर को डुबोता  और निकारागुआ को भिगोता हुआ  ग्रेनाडा की छाती में विषदन्त चुभोने के बाद  क्यूबा की ओर फण तानकर फुफकारता हुआ  यहाँ है अमेरिका काँपती अँगुलियों से उसे दिखाता हूँ  कि बेचैन हो जाता है प्रश्नाकुल मन  क्या सिर्फ यहीं है अमेरिका  नक्शे में खिंची सीमाओं में ही फिर प्रिटोरिया के कन्धे...

लीलाधर मंडलोई की कविताएं

Image
                          लीलाधर मंडलोई  लीलाधर मंडलोई की कविताएं प्रतिरोध की एक मजबूत आवाज़ हैं जिनमें हम अपने समय के स्याह सच को देख सकते हैं, महसूस कर सकते हैं और उसे पहचान भी सकते हैं।ये कविताएं ऐसे समय की हैं जब चीजों के मायने बदल दिए गए हैं और एक नई शब्दावली विकसित की जा रही है। यहां विरोध का मतलब बदल दिया गया है। प्रश्न उठाने को खतरनाक बना दिया गया है। इसके बावजूद जो आवाज है वह अपने होने को लेकर आश्वस्त हैं,आशंकित नहीं।ये कविताएं उसी आवाज के पक्ष में एक गवाही है। पराजयों के बीच  जो लोग मनाते हैं पराजय का उत्सव और निराशा में खोजने लगते हैं आनन्द मैं उन लोगों में नहीं हूँ ईश्वर के भरोसे छोड़ नहीं सकता मैं यह दुनिया एक छोटी सी चींटी भी है उम्मीद का बिन्दु मुझे भरोसा है वह मनुष्य की तरह कर सकती है ईश्वर को अपदस्थ कभी भी जिन्हें पसन्द नहीं अँधेरा, उदासी और असहायता मैं उनके साथ मिलके भेदना चाहता हूँ निराशा का गढ़ इसे न माना जाए मिथ्या आशावाद कि पराजयों के ऐन बीच हम देख रहे हैं प्रतिरोध का स्वप्न हमें मालूम है कि...

उमा शंकर चौधरी की कविताएं

Image
उमा शंकर चौधरी   उमा शंकर चौधरी की कविताएं अपने तेवर और कहन शैली के कारण अलग से पहचान में आ जाती हैं।उनकी कविताओं में एक बेचैनी है।ये वही बेचैनी है जिसे सीने में दबाए इस देश का नागरिक एक तरफ रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहा है तो दूसरी तरफ अपने स्वप्न के लिए।इन दोनों के बीच जीता हुआ वह उम्मीद का दामन नहीं छोड़ता।ये कविताएं एक थके हुए या हारे हुए मनुष्य की नहीं बल्कि एक लड़ते हुए मनुष्य की कविताएं हैं। तब भी जिन्होंने दहशत के खिलाफ लिखीं कविताएं नरसंहार के खिलाफ बनाई एक ज़रूरी पेंटिंग जुल्म के खिलाफ हमेशा उठायी अपनी आवाज़़ उनका शरीर भी एक दिन कमज़़ोर हो जाएगा उंगलियां कांपने लगेंगी एक दिन लड़़खड़़ाने लगेगी आवाज़़ अमोनिया बढ़ जाएगा शरीर का और होने लगेंगे वे स्मृति लोप का शिकार अस्पताल के बिस्तर पर वे रहेंगे बेहोश  कई दिनों तक कई दिनों तक उनकी स्मृति में नहीं होगा कुछ भी अस्पताल के बिस्तर पर देखना उनको आहत करेगा मन को बाहर हम कई दिनों तक या कई महीनों तक दुआ करेंगे उनके तंदरुस्त हो जाने की संभव है एक दिन खत्म हो जाए सब कुछ संभव है वे लौट आएं इस बार लेकिन हो जाएं बेहद कमज़़ोर कमजोर हो ज...