निशांत की कविताएं


                                           निशांत

निशांत की कविताएं इस मायने में अलग हैं कि यहां युवा जीवन की जद्दोजहद,नौकरी,प्रेम,और बेरोज़गारी का यथार्थपूर्ण और मार्मिक चित्रण शुरू से मिलता रहा है।जिन विषयों पर सहज रूप से ध्यान नहीं जाता ऐसे विषयों पर निशांत की कविताएं अक्सर ध्यान खींचती हैं। यहां प्रस्तुत कविताएं इसका उदाहरण हैं।


कोटा

I.

वे इतने भोले होते हैं

किसी गैंग में शामिल नहीं होते

कोई नशा नहीं करते

घर –घरवालों और अपने बारे में सोचते सोचते

एक दिन महज शरीर में तब्दील हो जाते हैं


वे पढ़ने आते हैं

पढ़ते पढ़ते लड़ाकू हो जाते हैं

कुछ पढ़ाकू भी

दीन –दुनिया से कट जाते हैं

कौन सा भूत है जो शिकारी कुत्ते सा

उनका पीछा करता है


दौड़ते दौड़ते वे कोटा पहुचते हैं

जिसे जीत समझते थे

वह तो एक बूंद भी नहीं है इस संसार के लिए

तब बौद्धत्व की प्राप्ति होती है

ज्ञान से जिंदगी में सब पाते पाते

सब खो गया

सिर्फ औया सिर्फ

देह को कमरे से बाहर निकाला गया

ज्ञान कोटा में ही रह गया


II.

वे क्या बनना चाहते थे

उन्हें नहीं पता था

जब पता चला

वे कोटा पहुँच चुके थे


एक लड़की अपने पिता की तरह बनना चाहती थी

माँ नफरत करती थी उसके पिता से

एक लड़का माँ बनना चाहता था

पिता के साए से दूर रहना चाहता था

छोटी छोटी इच्छाओं में कैद होकर

वे यहाँ पहुचे थे


दूसरों की सफलता से ज्यादा जरुरी था

अपनी असफलता को रोकना

सफल होना मज़बूरी थी

लज्जा के कीचड़ में गिरने से बचने के लिए

सफलता से पहले वर्जित था

प्रेम के फल का बढ़ना पकना चखना

पढ़ रही थी वह

दांव पर लगी थी परिवार की सफलता


‘लगा चुनरी में दाग घर जाऊ कैसे ‘

सुनते सुनते सो गई एक पूरी गैंग

लड़कियां भावुक होती हैं

वो लड़की भी गई इस संसार से

जिसके सामने सारी दुनियां

अपने इलाज के लिए झुकाती सर

इतना प्यार वो अपने माँ बाप और अमेरिका रहनेवाली

आइआइतियन बहन से भी नहीं कर पाई थी !

बेचारी लड़की !


चार माएं –पांच बाप रो रहे थे

एक भाई चुपचाप अपनी माँ को कोस रहा था

बहन की हत्या के लिए

खुद को जिम्मेदार ठहराते हुए


अभाव में स्वभाव ख़राब होता है

महत्वकांक्षा में व्यक्ति

सफलता से नहीं लोभ से भ्रष्ट होता है मस्तिष्क

दरअसल सारे लोग

पैसा छापने की मशीन लाना चाहते हैं

बच्चों को कोटा पहुँचाना चाहते हैं


बच्चे क्या बनना चाहते थे

उन्हें पता नहीं था.


III.

चौदह साल की उम्र में

अकबर ने इस देश की बागडोर संभाल ली थी

शिक्षक पिता

इतिहास की किताब पढ़कर सुनाता है

बेटा दसवीं की परीक्षा देगा

कोटा जायेगा


लड़का पिता को देखकर मुस्कुराता है

दरअसल वह अकबर नहीं

अकबर का पिता बनना चाहता है

इतिहास की किताब में जाकर


पिता खांसते है

उनका खांसना पूछना है-ध्यान किधर है ?

वह सर झुकाकर

पढ़ने लगता है सामने खुली गणित की किताब


उसकी इच्छा अकबर बनने में नहीं

उसके बाप बनने में है .


IV.

हमारे ज़माने के व्यंग्य और अपमान

तुम्हारे ज़माने में भी

लदे रहते हैं हमारे कन्धों पर बेताल की तरह

तुमने कहाँ देखे हैं हमारे घाव

घाव के अन्दर रेंगते हुए कीड़े


सारे दुःख हमने झेले हैं

कष्टों को फूल

परेशानियों को धूल समझा है इसके लिए

जीवन को जीवन नहीं पानी समझा था और

पानी की तरह खर्च किया था तुम्हारे लिए


पानी पानी पानी

हाय पानी

पानी ने छीन ली जिंदगानी

हाय पानी

‘कोटा’ का पानी

‘जनरल ‘वाले तो मरेंगे बिना दाना-पानी कहनेवाले

अपने दर्द को नहीं

अपनी कमजोरियों को ढकने का

एक आसान सा पत्थर उछालते है आसमान की तरफ

अधजल गगरी छलकत जाए की तरह .


V.

हमारी इच्छाओं के जंगल में

हमने भटका दिए अपने अकबरो को

दरअसल हमने सम्मान और रुआब के चक्कर में

चुकाए है जीवन


क्या करते ?

हम अपनी जिल्लत को भूल नहीं पा रहे थे

देख नहीं पा रहे थे

आबादी और नौकरी का औसत

‘सर्वाइवल ऑफ़ दि फिटेस्ट ‘को मंत्र की तरह पढ़ाते

भूल गए थे

हारनेवाले को मरना भी पड़ता है


सबके लिए नहीं

अपने लिए जीवन की तमाम सुविधाओं की मांग ने

बनाया हैं हमें

हत्यारा डकैत और लूटेरा


हम समाज को लूटते हैं

लूटते हैं देश के भविष्य को

अपने बच्चे की जिंदगी लूटते हुए

शर्मशार होते हैं हम


हम कोटा नहीं बनाते

तृतीय विश्वयुद्ध के लिए हथियार बनाते हैं .




प्रेम,पागल और बच्चा


एक बिस्किट का पैकेट

एक पानी का बोतल

जाती हुई रेलगाड़ी और

हिलाते हुए हाथ,प्रेम नहीं है


साथ टहलना

साथ सोना

साथ रहना

प्रेम नहीं है


किसी का ख्याल रखना

दुःख सुख को एक साथ झेलना भी

प्रेम नहीं है


कुछ लोग

घर से छिपकर मिलते है

उसे प्रेम कहते हैं

शादी बच्चे करते हैं

शायद यह भी प्रेम नहीं है


ऐसे ही एक जोड़े से मिलने गया

उनका दो साल का बच्चा घर से बाहर

एक पागल से हस हस कर बातें कर रहा था

मैं उल्टे पाव वापस आया


पागल और बच्चे की हँसी ने समझाया

प्रेम पागल कर सकता है

बच्चा कर सकता है


तुम्हारे अंदर ओ बच्चा है

मेरे अंदर ओ पागल।


हम ताकतवर है,हम से डरो

          

कुछ लोग

अपने से तय कर लेते हैं

ओ महान हैं


हिटलर और उसके मंत्री को भी लगता था

आजकल प्रधानमंत्री को लगने लगा है

कुछ लुच्चों-लफंगों को भी लगने लगा हैं

ओ ताकत की बात करते हैं

डर डर के रहने की सलाह देते हैं


उनके पास उनके आकाओ द्वारा उपलब्ध  करवाएं

अफवाह होते हैं

झूट की भ्रामक ताकत होती हैं

संघ का बल होता है


ओ सीधे बात करने से कतराते हैं

ओ तंत्र का इस्तेमाल करेंगे

आपकी हत्या को आत्महत्या सिद्ध करेंगे


मिल बैठ के बात करने से

उन्हें डर लगता है

अपने श्रेष्ठ होने का अभिमान होता है

तुम्हारे इतने पढ़-लिख-पुरस्कृत हो जाने पे आह होता हैं

तुम्हारे जूते घड़ी कोट कमरे से डाह होता हैं


उन्हीं के लिए

उनके एक विधर्मी ने कहा था-

हे ईश्वर, इन्हें माफ करना!

ये नहीं जानते,

ये क्या कर रहे है...।



जादू जब टूटता है

       

अब तो हवाई जहाज भी छोटे दिखते है...

जादू जब टूटता है

सबकुछ कितना छोटा हो जाता है।





पानी,मछलियों के रोने से बनता है

                      

यह कुआँ बना है

एक छोटी मछली के आंख के पानी से

देखों वो अंदर टहल रही है


गांव का तालाब

झील नदी समुन्द्र उनके ही आंखों के पानी से बने हैं

चाची बतलाती और मेरा मुँह देखती


पानी से बाहर निकालते ही

वे मरने लगती है

वे हमलोगों के लिए रोती हैं

मेरे तुम्हारे और

तुम्हारी माँ के हिस्से का भी वहीं रोती हैं


रोना ही उनका काम है

है ईश्वर

है प्यार


बबुआ ई चिट्ठी

रामप्रसाद मास्टर जी को देना

कहना मछली ने लिखा है

सचमुच चिट्ठी के अंत में

एक सुंदर सी मछली टांक देती थी विधवा चाची


एकदिन चाची

घर के कुएं में मछली बन उतराई


आज जब मेरी बेटी

-मछली जल की रानी है

जीवन उसका पानी है...तुतलाती है

तो सच कहता हूँ

चाची की बात याद बहुत आती है कि

-पानी

मछलियों के रोने से बनता हैं।



जिधर एक किसान थूक कर चला गया है 

                  

हाथी गड्ढे में बैठ भी जाएगा

तो गदहे से ऊंचा दिखेगा


उस किसान ने कहा

फिच्च से थूका

और अपनी राह पकड़ ली


मैं समझ नहीं पाया

यह मुहावरा किसके लिए है

उस ने खुद के लिए कहा है या

मुझ मास्टर के लिए 

पेट्रोल पंप के मालिक को या

लानत मलामत करते हुए ईश्वर को


आज के आज

और अभी के अभी रिटायर करते हुए

मुख्यमंत्री

प्रधानमंत्री या

गांव के सरपंच के लिए या

उस पार्टी के लिए जिसकी सरकार

कल उसने उतार दी है

अपने एक वोट से


किसके लिए था

किसके लिए है

यह मुहावरा


जिसकी जिससे भी तुलना हो

मुहावरे में अर्थ तो है

काफी खतरनाक अर्थ है

आखिर एक किसान ने कहा है

और उसकी वह फिच्च की थूक

काफी आग लगानेवाली थी

पेट्रोल के बनिस्बत

घाटे की खेतों में

रोजगरविहीन समय के जीवन में

जवान भारत में

जवान विश्व में


मैं तो एक डेग भी नहीं उठा पा रहा हूँ

उधर ही देख रहा हूँ

जिधर एक किसान थूक कर चला गया है।





बाजार के पक्ष में


           ( | )


कमरे से 

दस रुपये की दूरी पर है एस एन मार्किट

बीस रुपये की दूरी पर सी पी

और एक बस बदल कर चांदनी चौक


महंगे मालों की महंगी दुकानों ने नहीं

साधारण बसों के साधारण किरायों ने

हमें असाधारण मनुष्य बनाया

एस एन पहुँचाकर


सचिन,रितिक,सानिया

विराट,धोनी और दीपिका पादुकोण जैसा ही दिखने लगे हम

सौ रुपये में टैग ह्यूजर की घड़ी

साठ रुपये में रे-बैन का चश्मा

ढाई सौ में री-बाक का जूता और

पांच सौ रुपए में रेमंड्स का कोट पहनकर

नरेंद्र मोदी और कोविद जैसा कुछ महसूसने लगी हमारी त्वचा


ये बाजार न होता तो हम मनुष्य है

इस पर हमें विश्वास न होता


हमारी आत्मा शर्म में डूबकर मर जाती

कर्ज की दुकान में जिस्म ऐंठ कर दम तोड़ देता

अपने ही हाथों से हमारे बच्चे अपना गला घोंट लेते

दस रुपए के साधारण किराए ने उन्हें एस एन पहुँचाकर

आत्महत्या करने से बचा लिया

हमें शर्म में डूबकर मरने से भी


               ( || )


कमाने को हम तो इतना कमा ही लेते थे कि

पेट भर जाए तन ढक जाए

पर मामला पेट भरने और तन ढकने का नहीं था

वह तो रिक्शावाला रेहड़ीवाला और

गली का पियक्कड़ रामलाल तक भर ढक लेता है


हम तो सरकारी बड़ी नौकरियों

जिसमें पैसे बरसने की इफ़रात जगहें निकलती है

एम एन सी कम्पनियों

जिसमें एक पैर हमेशा हवाई जहाज में होता है

बड़े उद्योगपतियों मसलन टाटा,बिरला,अम्बानी

जो खरीद ले धोनी,सचिन,विराट को या फिर

कैटरीना, ऐश्वर्या, दीपिका जैसा कुछ दिखना चाहते है


सुंदर और समृद्ध बनने की सारी कोशिशों के बाद

जब भाग्य से हारने लगता है जीवन

तब यही बाजार ऑक्सीजन बन आता है सामने

मरने की चाहत जिंदा हो जाती है

सुंदर और समृद्ध दिखते हैं हम यहाँ आकर


उनके जैसा न बन पाने का दुख

उनके जैसा दिखने से कम करना चाहते है हम


हम गरीबी रेखा से ऊपर के हैं

पर कैटल क्लास जैसा दिखते हैं उन्हें

हमें बचाए रखना पड़ता हैं अपना आत्म सम्मान

हवा से भी ज्यादा जरूरी आत्म सम्मान


एस एन मार्केट ने 

समय समय पर पहुचाया है जरूरी ईंधन

आत्म सम्मान को बचाए रखने के लिए


दस रुपये की दूरी पर है एस एन मार्किट

बीस रुपये की दूरी पर सी पी

और एक बस बदल कर चांदनी चौक दिल्ली में

और दिल्ली के बाहर पटना

कोलकाता, हैदराबाद, लखनऊ, औरंगाबाद में भी

बस नाम बदल जाता है

माल वही रह जाता है


ये बाजार न होता तो हम मनुष्य है

इस पर हमें विश्वास ही न होता।




भाषा एक हथियार है

                     

बात ई और उ की मात्रा की नहीं है

बात है

इस बहाने

उन्हें डराने की

कभी कभी धमकाने की

नीचा दिखाने की

हीनताबोध के नदी में डुबोकर मार देने की


'समझाना' और 'बताना'

दुनिया के सबसे कोमल शब्द है

इन्हें कटार की तरह इस्तेमाल नहीं करना चाहिए 


भाषा एक हथियार है

हत्या करने का एक शानदार शस्त्र

एक धारदार अस्त्र


गोला बनाता हुआ एक लाल स्याही भी उकसा सकता है किसी को

अपनी हत्या के लिए


किसी अदालत में दाखिल नहीं होता कोई केस

भाषा में की गई

इस हिंसा,बर्बर हिंसा के खिलाफ


गुलाम या उपनिवेश

इसी तरह बनाये जाते है

यह बताते हुए कि देखो- तुम्हारी भाषा में,

कितनी अशुद्धियां है।

कितनी गलतियां है।

भला,यह भी कोई भाषा है ?


भाषा से गुलाम बनाये ही नहीं जाते

सदियों से सदियों तक भाषा से

गुलामों की खेती भी की जाती हैं 

लार्ड मैकाले को तो आप जानते ही होंगे ?


भाषा की शुद्धता के अस्त्र से

भाषा के सृजनहारे  की कोख में ही हत्या कर दी जाती है

कर दी जाती है हत्या भाषा के भविष्य की 


वे नहीं जानते

कुछ न लिखने से ज्यादा जरूरी है

कुछ लिखना कुछ कहना कुछ बोलना

गलत ही सही


जो तन से नहीं हारता,

मन से नहीं हारता।

वो यहाँ हार जाता है,भाषा के मोर्चे पर।


भाषा के मोर्चे की हार

उसकी आत्मा में नश्तर की तरह चुभती रहती है


हे, पाणिनि के वंशजों

हे, वैयकरणाचार्यों

हे, प्रोफेसरों

जरा अपने उस बच्चे को देखो

जो अभी बकैया खिंच रहा है

मम्म मम्म बोल रहा है

दुनिया की सबसे खूबसूरत भाषा रच रहा है 


वह

अशुद्ध भाषा बोल रहा है।





निशान्त


जन्म:4अक्टूबर,1978,लालगंज, बस्ती(उ. प्र.)।

काव्य संग्रह 'जवान होते हुए लड़के का कबूलनामा'(भारतीय ज्ञानपीठ,2009),  'जी हाँ, लिख रहा हूँ..(राजकमल प्रकाशन,2012), 'जीवन हो तुम(सेतु प्रकाशन,2019),जब चीजें देर से आती हैं जीवन में(सेतु प्रकाशन,2025)।जीवनानंद दास पर हिंदी में पहली आलोचना पुस्तक 'जीवनानंद दास और आधुनिक हिंदी कविता'(नई किताब,2013),कविता पाठक आलोचना(सेतु प्रकाशन,2022)से प्रकाशित।

कविताओं का अंग्रेजी, उर्दू,बांग्ला, ओड़िया,मराठी,गुजराती सहित कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद।

एम ए,एम फिल,पीएच ड़ी(हिंदी)।। की पढ़ाई जेएनयू से।

बचपन से बंगाल में रहनवारी।बांग्ला साहित्य और फिल्मों से लगाव।रवींद्रनाथ टैगोर की 13 कविताओं पर आधारित फिल्म त्रयोदशी में अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त फिल्मकार और कवि बुद्धदेव दासगुप्ता के साथ बतौर सहायक निर्देशक और अभिनेता कार्य।

रवींद्रनाथ ठाकुर, जीवनानंद दास, सत्यजीत रे,महाश्वेता देवी,सुनील गंगोपाध्याय,संख घोष,नवारुण भट्टाचार्य,जय गोस्वामी,बुद्धदेव दासगुप्ता,आलोक सरकार से लेकर बंगाल के युवा कवियों की कविताओं का बांग्ला से हिंदी अनुवाद।अनुवाद की चार पुस्तकें प्रकाशित।

कविता के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार, नागार्जुन शिखर सम्मान, शब्द साधना युवा सम्मान, नागार्जुन प्रथम कृति सम्मान,मलखान सिंह सिसोदिया पुरस्कार एवं आलोचना के लिए देवीशंकर अवस्थी सम्मान से सम्मानित।

वर्तमान में  काज़ी नजरुल विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक।

संपर्क:Dr.Bijay kumar shaw.

Dept.of hindi,vidyacharcha bhawan,

kazi nazarul university,kalla bypass more,

po.kalla c.h.,dist. Paschim bardhman.

pin -713340.west bengal.

Phone-9239612662/8250412914

Comments

Popular posts from this blog

एकांत श्रीवास्तव की कविताएं

प्रेम रंजन अनिमेष की कविताएं

प्रभात की कविताएं