Posts

Showing posts from October, 2025

निरंजन श्रोत्रिय की कविताएं

Image
                                  निरंजन श्रोत्रिय   निरंजन श्रोत्रिय की कविताओं को अगर संपूर्णता में देखें तो उनकी कविताओं में जीवन की जद्दोजहद और स्वप्न तो है ही।अपने समय के क्रूर यथार्थ पर भी उनकी गहरी नज़र है।वे एक बादशाह को तानाशाह में बदलते देखते हैं तो भौंचक नहीं रह जाते बल्कि उसे कविता में दर्ज करते हैं।उनकी कविताओं में  अलग तरह की बेचैनी है जो हर चीज़ को बारीकी से देखने के लिए मजबूर करती है।यहां प्रस्तुत कविताएं इसका उदाहरण हैं कि कविता कैसे बने बनाए मुहावरों से अलग भी लिखी जा सकती है और अपनी छाप छोड़ सकती है। अंतर बताओ जब भी खोलता हूँ बच्चों का पन्ना अख़बार में एक स्तम्भ पाता हूँ स्थायी भाव की तरह— अंतर बताओ! दो चित्र हैं हू-ब- हू कि बच्चे पार्क में खेल रहे या स्कूल में मचा रहे धमा-चौकड़ी या सर्कस का कोई दृश्य दस अंतर बताने हैं बच्चों को क्यूँकि दिखते एक-से, मगर हैं नहीं बच्चे जुट जाते हैं अंतर ढूँढने जितने ज़्यादा अंतर उतने अधिक बुद्धिमान! उस समय जबकि समानता ढूँढना बेहद ज़रूरी है बच्चे ...

सविता सिंह की दस कविताएं

Image
  सविता सिंह  समकालीन हिंदी कविता में जिन कवियों की पहचान उनकी कविताओं से आसानी से की जा सकती है उनमें सविता सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।उनकी कविताएं भाषा के स्तर पर जितनी कोमल दिखती हैं भाव और भंगिमा के स्तर पर उतनी ही वे ठोस होती हैं। यहां प्रस्तुत कविताएं इसका उदाहरण हैं। जिधर स्वप्न है  जिधर स्वप्न है उधर ही प्यास है उधर एक खाली मैदान है पथरीला  कहते हैं उधर पहले घास का साम्राज्य था उसमें रहने वाले जीवों का एक बार आसमान से ढेर सारा जल उतरा महीनों हरियाली को खुद में डुबोए रखा फिर उसे नष्ट कर दिया जीवन की प्यास बची रही उसे ही समझने तमाम जीवों ने फिर जन्म लिया तब से वे अब तक ऐसे ही हैं प्यासे गला सूखा हुआ स्वप्न जगा चलता हुआ। विकट इच्छा उड़ती हुई सी एक प्यास आकर गले में बस गई वह महज पानी के लिए नहीं आई थी मेरे पास उसे पता था मुक्ति का  कोई एक रास्ता मुझसे होकर जाता है वह मेरे साथ ही चलना चाहती थी पानी ढूंढना मेरा काम था उसे तो बस चलना था  दग्ध मेरी आत्मा के साथ उसे अंदाजा कहां था उन कंकड़ों पत्थरों का  जो रास्ते में आने वाले थे उसे मेरी दूसरी...

विष्णु नागर की कविताएं

Image
                                      विष्णु नागर   विष्णु नागर की कविताओं में जो व्यंग्य है वह बेध देता है।इनमें हमारे समय का वह यथार्थ है जो विद्रूप है और विह्वल करने वाला है।उनकी यह शैली गद्य में भी उतनी ही मारक है जितनी कविता में।ये कविताएं इसका उदाहरण हैं कि कैसे व्यंग्य का इस्तेमाल कर कविता को प्रभावशाली बनाया जा सकता है। दलाल  दलाल कभी ग़लत नहीं होते वे खरीदनेवाले के भी  शुभचिंतक होते हैं बेचनेवाले के भी वे सकारात्मक होते हैं  वे काले को भी उतना ही अच्छा बताते हैं  जितना सफेद को पीले, नीले, हरे, गुलाबी के भी वे प्रशंसक होते हैं  वे दोनों से अंतरंग होकर दोनों की हिम्मत बढ़ाते हैं  दोनों से कमाते हुए  दोनों को सुखी -समृद्ध देखना चाहते हैं  दलाल कभी विफल नहीं होते दलाल कभी ग़लत नहीं होते हवा पानी रोशनी से भी ज्यादा  जरूरी होते हैं दलाल। समय कल पत्ते भी जिनकी इजाजत से हिलते थे आज जंगल के जंगल उजड़ जाते हैं उन्हें खबर तक नहीं होती। कवि की मुश...

बसंत त्रिपाठी की कविताएं

Image
  बसंत त्रिपाठी   बसंत त्रिपाठी की कविताओं में हाल के वर्षों का वह यथार्थ बेचैन करता है जो दिखता तो है लेकिन उसके दिखने का इतना अभ्यास करा दिया गया है कि वह निर्मम और खुरदरा होने के बावजूद बहुत असर नहीं करता।विकास के तमाम उपाय चमक-दमक की जमीन तैयार कर रहे हैं लेकिन उस चमक की नींव में जो दब रहा है वह भविष्य की राख है।ये कविताएं उसी 'अनामंत्रित अंधेरे' के बाद की कविताएं हैं जिसने धीरे-धीरे सबकुछ अपने नियंत्रण में ले लिया है या लेने के लिए प्रयासरत है।   पहाड़ से लौटकर पहाड़ से लौटा हूँ  बुरुँश, बाँज और देवदारु के जंगल से  फेफड़ों में ऑक्सीजन भरकर लौटा हूँ  लौटा हूँ बहुत नीला आसमान देखकर  पारदर्शी जल को तेज बहते देखकर लौटा हूँ  टूरिस्ट पैकेज को फाइव स्टार रेटिंग देकर लौटा हूँ  लेकिन जब से लौटा हूँ  उदास हूँ, दरक रहा हूँ कि हाय  एक दिन बाँज के जंगल नहीं रहेंगे  आसमान मैदानी आसमानों की तरह धूसर हो जाएगा  पारदर्शी नदियाँ  मटमैले नालों की तरह बहेंगी  क्योंकि पहाड़ से सिर्फ लौटा नहीं हूँ  अबाध निर्माण की विध्वंसक कार्रव...

अनुराधा सिंह की कविताएं

Image
  अनुराधा सिंह  अनुराधा सिंह अपनी कविताओं में समय और समाज के साथ स्त्री जीवन और उसकी विडंबनाओं को बहुत मार्मिक तरीके से दर्ज करती हैं।इस दर्ज करने में उनकी भाषा जादू की तरह असर करती हैं।यही कारण है कि ये कविताएं अपनी बुनावट में बहुत महीन और गझिन हैं। यहां प्रस्तुत कविताएं इसका उदाहरण हैं। विरासत  दुनिया में हवा पानी कम   बालकनी में धूप कम   गमलों में मिट्टी गुज़ारे लायक  मुझे कम के पक्ष में खड़े रहना पड़ा है अब तक  जानती भी हूँ कि कम से  बहुत अधिक नहीं चला पाऊँगी मैं काम  लज्जा और लिहाज़ तो होने ही चाहिए आँख ढँकने लायक  भले ही उघड़ी रहे आत्मा  फिर कुछ तो छोड़ कर भी जाना है मुझे  बच्चों की ख़ातिर पुरखों की इस ज़मीन पर  विरासत जैसा महान विचार नहीं मेरा   एक बेटी है  जो रहेगी बची पृथ्वी पर मेरे बाद भी   मंदिर की महंत नहीं जो दान पेटी की चाबी डोरी छोड़ जाऊँ सात पीढ़ी बैठ कर खाएं ऐसा उद्यम नहीं नीयत में  खून में हुनर नहीं कि गा बजाकर लोक ही निभाएँ   घर के मर्द जुटे रहे दो जून की जुगाड़ मे...