सौम्य मालवीय की कविताएं
सौम्य मालवीय कविता के नए स्वर में जो महत्वपूर्ण और उम्मीद से देखे जाने वाले नाम हैं उनमें सौम्य मालवीय भी हैं।उनकी कविताओं में अपने समय और समाज का वह सच दिखता है जो उपेक्षा का शिकार है। विकास के मील के पत्थर रोज किन चीजों को रौंद कर गाड़े जा रहे हैं,उनके बारे में इनकी कविताएं बात करती हैं। इनकी कविताओं में एक बेचैनी है जो पढ़ने वाले में भी हलचल पैदा करती है। पहाड़ धरती का शहीद है क्या कह सकता है पहाड़ कहीं उठकर चल तो नहीं सकता समेट नहीं सकता अपनी सलवटें अपने पैर मोड़ कर-सर गोड़ कर बैठ नहीं सकता उसे तो रहना है सर उठाये कंधे से कंधा मिलाये उसकी नदियाँ बौखलाती हैं बदलियाँ बजर ढहाती हैं वो समझाता ही है कहता है धीरज से बहो-हरो मेरा दुख छाओ-बोते रहो धमनियों में आसमान वो ढहता है अपनी ही मिट्टी में एक-एक कर टूटती हैं शिलाएँ दरकती है देह-जल सूखता है पत्थरों का वो नहीं किसी का संतरी-किसी का पासबाँ राजमार्ग, सुरंगें, खनिज चूसने के यंत्र कितना भी दावा धरें उस पर राष्ट्रीय सम्पदा कह कर हक़ीक़त तो ये है कि...