Posts

सौम्य मालवीय की कविताएं

Image
सौम्य मालवीय  कविता के नए स्वर में जो महत्वपूर्ण और उम्मीद से देखे जाने वाले नाम हैं उनमें सौम्य मालवीय भी हैं।उनकी कविताओं में अपने समय और समाज का वह सच दिखता है जो उपेक्षा का शिकार है। विकास के मील के पत्थर रोज किन चीजों को रौंद कर गाड़े जा रहे हैं,उनके बारे में इनकी कविताएं बात करती हैं। इनकी कविताओं में एक बेचैनी है जो पढ़ने वाले में भी हलचल पैदा करती है। पहाड़ धरती का शहीद है क्या कह सकता है पहाड़  कहीं उठकर चल तो नहीं सकता  समेट नहीं सकता अपनी सलवटें  अपने पैर मोड़ कर-सर गोड़ कर बैठ नहीं सकता  उसे तो रहना है सर उठाये   कंधे से कंधा मिलाये  उसकी नदियाँ बौखलाती हैं  बदलियाँ बजर ढहाती हैं  वो समझाता ही है कहता है धीरज से बहो-हरो मेरा दुख  छाओ-बोते रहो धमनियों में आसमान  वो ढहता है अपनी ही मिट्टी में  एक-एक कर टूटती हैं शिलाएँ दरकती है देह-जल सूखता है पत्थरों का  वो नहीं किसी का संतरी-किसी का पासबाँ राजमार्ग, सुरंगें, खनिज चूसने के यंत्र  कितना भी दावा धरें उस पर  राष्ट्रीय सम्पदा कह कर  हक़ीक़त तो ये है कि...

संजय कुंदन की कविताएं

Image
                                    संजय कुंदन   समकालीन कविता के एक महत्वपूर्ण कवि हैं संजय कुंदन।उनकी कविताओं में जो समय और समाज है वह हमारे ही आसपास का है और बहुत मजबूती से उपस्थित है।सत्ता,पूंजी,वर्चस्व और राजनीति के गठजोड़ की तह तक उनकी कविताएं ले जाती हैं और उसकी बखिया उधेड़ देती हैं।संजय कुंदन की कविताओं में हमारे समय का वह सच दर्ज है जो या तो आंखों से ओझल हो जाता है या उस पर ध्यान नहीं दिया जाता।बेहद मामूली विषय पर कई अविस्मरणीय कविताएं उन्होंने लिखी हैं।उनकी कविताओं में आम आदमी की पीड़ा तो है ही उनका संघर्ष भी वहां मौजूद है।अपने समय की विडंबनाओं को रचने का उनका तरीका बिल्कुल अलग है और प्रभावशाली भी। सड़क एक बीमार या नज़रबंद आदमी ही जानता है  सड़क पर न निकल पाने का दर्द  सड़कों से दूर रहना हवा, पानी, धूप  और चिड़ियों से अलग  रहना ही नहीं है यह मनुष्यता से भी कट जाना है सड़कें कोलतार की चादरें नहीं हैं वे सभ्यता का बायस्कोप हैं  कोई इंसान आख़िर एक मशीन से  ...

नेहा नरूका की कविताएं

Image
नेहा नरूका   समकालीन कविता में नेहा नरूका की कविताएं अपनी भाषा,कहन शैली और तेवर के कारण शुरू से ध्यान खींचती रही हैं।अपने समय के धूसर और स्याह सच को वे जिस अंदाज में रचती हैं वह रेखांकित करने लायक है।यहां प्रस्तुत कविताएं इसका उदाहरण हैं। जैकेट कम्पनी वाली फूलवती फूलवती एक फैक्ट्री के लिए जैकेट सिलती है आँखें जवाब दे रही हैं उसकी फिर भी वह देख लेती हैं अंधेरे में  खट-खट करती सुई का धागा घण्टे भर में बना देती है  किसी अज़नबी के लिए उसकी पसंद के रंग रूप वाली सुंदर जैकेट यूँ तो उसका बनाया जैकेट सैकड़ों अज़नबियों ने पहन रखा है पर अजनबी अनजान हैं फूलवती के हुनर से वे अक्सर जैकेट की तारीफ़ में किसी कम्पनी का नाम लेते हैं  जैकेट कम्पनी के नाम से बिकती है कम्पनी का असली मालिक एक मंत्री का ख़ास है पर काम देखने वाला मालिक कोई और है काम देखने वाला बेर की गुठली की तरह सख़्त है उसे वहम है उसकी सख़्ती कम्पनी की दिन दूनी रात चौगुनी तरक़्क़ी का राज है उसे नहीं पता तरक़्क़ी का राज दरअसल फूलवती (जैसों) के हाथ में है अजनबी असली मालिक को भी नहीं जानते न उन्हें किसी को जानने में कोई दिलचस्पी है...

निरंजन श्रोत्रिय की कविताएं

Image
                                  निरंजन श्रोत्रिय   निरंजन श्रोत्रिय की कविताओं को अगर संपूर्णता में देखें तो उनकी कविताओं में जीवन की जद्दोजहद और स्वप्न तो है ही।अपने समय के क्रूर यथार्थ पर भी उनकी गहरी नज़र है।वे एक बादशाह को तानाशाह में बदलते देखते हैं तो भौंचक नहीं रह जाते बल्कि उसे कविता में दर्ज करते हैं।उनकी कविताओं में  अलग तरह की बेचैनी है जो हर चीज़ को बारीकी से देखने के लिए मजबूर करती है।यहां प्रस्तुत कविताएं इसका उदाहरण हैं कि कविता कैसे बने बनाए मुहावरों से अलग भी लिखी जा सकती है और अपनी छाप छोड़ सकती है। अंतर बताओ जब भी खोलता हूँ बच्चों का पन्ना अख़बार में एक स्तम्भ पाता हूँ स्थायी भाव की तरह— अंतर बताओ! दो चित्र हैं हू-ब- हू कि बच्चे पार्क में खेल रहे या स्कूल में मचा रहे धमा-चौकड़ी या सर्कस का कोई दृश्य दस अंतर बताने हैं बच्चों को क्यूँकि दिखते एक-से, मगर हैं नहीं बच्चे जुट जाते हैं अंतर ढूँढने जितने ज़्यादा अंतर उतने अधिक बुद्धिमान! उस समय जबकि समानता ढूँढना बेहद ज़रूरी है बच्चे ...

सविता सिंह की दस कविताएं

Image
  सविता सिंह  समकालीन हिंदी कविता में जिन कवियों की पहचान उनकी कविताओं से आसानी से की जा सकती है उनमें सविता सिंह का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।उनकी कविताएं भाषा के स्तर पर जितनी कोमल दिखती हैं भाव और भंगिमा के स्तर पर उतनी ही वे ठोस होती हैं। यहां प्रस्तुत कविताएं इसका उदाहरण हैं। जिधर स्वप्न है  जिधर स्वप्न है उधर ही प्यास है उधर एक खाली मैदान है पथरीला  कहते हैं उधर पहले घास का साम्राज्य था उसमें रहने वाले जीवों का एक बार आसमान से ढेर सारा जल उतरा महीनों हरियाली को खुद में डुबोए रखा फिर उसे नष्ट कर दिया जीवन की प्यास बची रही उसे ही समझने तमाम जीवों ने फिर जन्म लिया तब से वे अब तक ऐसे ही हैं प्यासे गला सूखा हुआ स्वप्न जगा चलता हुआ। विकट इच्छा उड़ती हुई सी एक प्यास आकर गले में बस गई वह महज पानी के लिए नहीं आई थी मेरे पास उसे पता था मुक्ति का  कोई एक रास्ता मुझसे होकर जाता है वह मेरे साथ ही चलना चाहती थी पानी ढूंढना मेरा काम था उसे तो बस चलना था  दग्ध मेरी आत्मा के साथ उसे अंदाजा कहां था उन कंकड़ों पत्थरों का  जो रास्ते में आने वाले थे उसे मेरी दूसरी...